मनुष्य का कंकाल तंत्र क्या होता है? - Skeletal System से सम्बंधित प्रश्न ?

मनुष्य का कंकाल तंत्र ( Skeletal System ) क्या है? यहाँ पर हम आपको कंकाल तंत्र से संबंधित बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य बताएंगे। जिन्हें जानना अतिआवश्यक है। क्योंकि, ये तथ्य किसी भी सरकारी नौकरी की परीक्षा के लिए अतिमहत्वपूर्ण साबित होंगे। और यदि कोई विद्यार्थी स्वंय की रूचि के लिए भी इन्हें पढ़े तो उसे भी ज्ञान प्राप्त होगा।

तथ्यों की भाषा बहुत ही सरल होगी। जिससे इन तथ्यों को याद रखने में और समझने में सहायता मिलेगी। कृपया सभी विद्यार्थियों से अनुरोध है कि इन तथ्यों (manav kankal tantra)को ध्यानपूर्वक पढ़े और याद करें।                                      सौरभ शर्मा
                                धन्यवाद

diagram of human skeletal system

Diagram-of-human-skeletal-system-hindi


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कंकाल या अस्थिपंजर क्या होता है? - human skeletal system


शरीर का ऐसा भाग जो सख्त और दृढ़ होता है। उस भाग को कंकाल या अस्थिपंजर कहते है। जंतुओं के शरीर मे आकृति को बनाये रखने के लिए, आंतरिक अंगों को सहारा देने के लिए, और उनकी सुरक्षा करने में सहायता प्रदान करता है। 


Types of human skeletal system


कंकाल 2 प्रकार का होता है। -

1- बाह्य कंकाल (Exoskeleton)
2- अन्तः कंकाल (Endoskeleton)

1- बाह्यकंकाल (Exoskeleton) - किसी भी शरीर की बाहरी सतह पर त्वचा के ऊपर जो दृढ़ संरचनाये पाई जाती है, वही संरचनाये बाह्यकंकाल का निर्माण करती है। ये त्वचा के डर्मिस या एपिडर्मिस स्तर से बनती है। आर्थ्रोपोडा संघ के जंतुओं में बह्यकंकाल पाया जाता है।

जो काइटिन नाम के पदार्थ का बना होता है। कशेरुकी जीवो में बाल, सींग, चोंच, शल्क, खुर, नाखून आदि किरेटिन नामक पदार्थ के बने होते है। कुछ कछुओं, मछलियों आदि में बाह्य कंकाल कैल्सिकृत शल्कों, डर्मल प्लेटो का बना होता है। अर्थात इनमे ठोस व दृढ़ संरचनाये शरीर के बाहर पाई जाती है।

2- अन्तः कंकाल (Endoskeleton) - किसी भी शरीर की आंतरिक संरचना में ठोस तथा दृढ़ संरचनाये पाई जाती हैं, तो वह अन्तः कंकाल कहलाता है। यह ठोस तथा दृढ़ संरचनाएं कैल्शियम तत्व की सहायता से बनती है। इन ठोस तथा दृढ़ संरचनाओं को अस्थि या कार्टिलेज कहा जाता है। तथा अन्तः कंकाल मुख्य रूप से कशेरुकी प्राणियों में ही पाया जाता है।

कंकाल के क्या कार्य होते है? - work of human skeletal


कंकाल के कार्य निम्नलिखित है-

1- गति या चलन (Movement or Locomotion) - कंकाल और पेशियों के सहयोग द्वारा ही संभव हो पाता है।

2- श्रवण (Hearing) - कर्ण की अस्थियां ध्वनि तरंगों को प्रवाहित करके सुनने में सहायता प्रदान करती है।

3- आकृति (Shape) -  कंकालीय ढांचा शरीर को एक निश्चित आकृति प्रदान करता है।

4- रुधिर कोशिकाओं का निर्माण (Formation of Blood Corpuscles : Haemopoiesis) - लंबी अस्थियो के सिरों पर लाल मज्जा गुहा में लाल रुधिर कणिकाएं तथा श्वेत रुधिर कणिकाओं का निर्माण होता है।

5- अवलंबन (Support) - कंकाल कशेरुकी जीवो के शरीर का एक ढांचा या पंजर बनाता है, और शरीर को अवलंबन प्रदान करता है, जिससे शरीर सीधा और सधा रह पाता है। और किसी भी कार्य को करने में सक्षम बनता है।

6- खनिज तत्वों का भंडारण (Storage of Minerals) - अस्थियो या हड्डियों में कैल्शियम कार्बोनेट और कैल्शियम फॉस्फेट तत्व संचित रहते है। और यदि किसी भी समय शरीर को इन तत्वों की आवश्यकता होती है, तब ये तत्व रुधिर के साथ शरीर मे मुक्त होकर शरीर के विभिन्न हिस्सो तक पहुँचते रहते है।

और इसी प्रकार से ये भोजन से अस्थियो में रुधिर द्वारा ही संचित भी होते रहते है। इस प्रकार ही शरीर के रुधिर में कैल्शियम और फॉस्फोरस जैसे तत्वों का संतुलन बना रहता है।

7- श्वासोच्छवास (Breathing) - शरीर मे बहुत स्थानों पर उपास्थियां पाई जाती है। जिनमे से एक श्वसन तंत्र भी है। जो अस्थियो की भांति बहुत अधिक कठोर नही होती है, किन्तु त्वचा जितनी मुलायम भी नही होती है। श्वसन तंत्र में लैरिक्स की उपस्थियां, ट्रैकिया के उपास्थिमय छल्ले तथा पसलियां श्वासोच्छवास में भाग लेती है।

8- सुरक्षा (Protection) - कंकाल शरीर के कोमल तथा महत्वपूर्ण अंगों की बाहरी आघातों और किसी भी प्रकार की चोट लगने से रक्षा करता है। जैसे कि मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए खोपड़ी होती है। कशेरुक दंड के अंदर मेरूरज्जु (spinal cord) सुरक्षित रहती है।

हृदय, फेफड़ो की सुरक्षा के लिए कशेरुक दंड, पसलियां, स्टारनम इन अंगों के चारो ओर एक सुरक्षा घेरा बनाते है। तथा कंकाल शरीर की पेशियों को जोड़ने के लिए भी एक सतह प्रदान करता है।


बह्य कंकाल और अन्तः कंकाल में क्या अंतर होता है?

(Difference between Exoskeleton and Endoskeleton)
दोनों में अंतर निम्लिखित है-

बह्य कंकाल (Exoskeleton)
1. यह शरीर को बाहर से ढकता है।
2. यह एक्टोडर्म से बनता है।
3. इसकी भीतरी सतह से पेशियां लगी रहती है।
4. यह अजीवी पदार्थ का बना होता है।
5. यह शरीर की वृद्धि को सीमित करता है।
6. वृद्धि के साथ साथ यह समय समय पर टूटता रहता है।

अन्तः कंकाल (Endoskeleton)
1. यह शरीर के अंदर स्थिति होता है।
2. यह मेसोडर्म से बनता है।
3. सभी पेशियां इसकी बाहरी सतह से लगी होती है।
4. यह सजीव ऊतकों का बना होता है।
5. यह शरीर को वृद्धि को सीमित नही करता है।
6. वृद्धि के साथ साथ यह समय समय पर नही टूटता है।


कंकाल का निर्माण करने वाले ऊतक कौनसे होते है?

(Tissue that make the Skeleton) 

कंकाल ऊतक शरीर का एक ठोस, दृढ और शक्तिशाली ढांचा तैयार करता है। इसे दो प्रकार से बाँटा जाता है : उपास्थि और अस्थि
ये मेसोडर्म से बनते है। और पेशियों के नीचे स्थित रहते है। ये सजीव ऊतक होते है, जो जीव की वृद्धि के साथ-साथ वृद्धि करते जाते है। 

कुछ अकशेरुकी जीवो में अन्तःकन्काल पाया जाता है किंतु यह श्रृंगी या चुनेदार होता है। जैसे - मोलस्क, कोरल्स, इकाईनोडर्मेटा।
कार्टिलेज मछलियों, आदि कशेरुकी जन्तुओं में अन्तःकन्काल उपास्थि वाला होता है। जबकि मनुष्य सहित सभी दूसरे कशेरुकियों में अन्तःकन्काल मुख्य रूप से अस्थियो का बना होता है, और कुछ उपस्थियां भी इनमें सम्मिलित होती है, जो अलग अलग स्थानों पर होती है।

1. उपास्थि या कार्टिलेज (Cartilage) - यह कंकाल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है। उपास्थियों में कोलेजन और इलास्टिन तंतु होते है, जिसके कारण ये लचीली होती है। सभी कशेरुकियों के भ्रूण में सबसे पहले कंकाल कार्टिलेज या उपास्थि का ही होता है।

वृद्धि होने के साथ साथ यह अस्थियो का बनता जाता है। या कह सकते है कि उपस्थियां ही समय के साथ साथ अस्थियो में बदलती जाती है। अस्थियो के निर्माण की प्रक्रिया को अस्थिभवन कहते है। फिर भी कुछ प्रकार की उपस्थियां व्यस्क होने पर भी बनी रहती है। जो निन्मलिखित है-

कैल्सिकृत (Calcified) - ये बिल्कुल भी लचीली नही होती है। ये अपारदर्शी तथा इनमे कैल्शियम के लवण जमा रहते है। ये फीमर तथा ह्यूमरस अस्थियो के शीर्ष पर मिलती है।

तंतुवत कार्टिलेज (Fibrous Cartilage) - ये सुदृढ़ होती है। कम लचीली और सघन होती है। ये अपारदर्शी होती है। ये स्तनधारियों में प्यूबिक संधान में मिलती है।

लचीली कार्टिलेज (Elastic Cartilage) - ये ज्यादा लचीली होती है। अपारदर्शी और घनी या सघन होती है। यह कर्ण पल्लव, एपिग्लोटिस और नाक के सिरे पर मिलती है।

काचाभ उपास्थि (Hyaline Cartilage) - ये लचीली होती है। और इनका रंग हल्का नीला होता है। ये अल्पपारदर्शी होती है। इनके मैट्रिक्स में तंतु नही होते है। ये स्वर यंत्र, श्वास नली, पसलियों के सिरों पर मिलती है।


2. अस्थि (Bone) - अस्थि एक प्रकार का सुदृढ़ संयोजी ऊतक है। जो आपस मे मिलकर एक कंकाल का निर्माण करती हैं। अस्थि के ऊतक के आधार पर अस्थियों को 2 भागो में बांटा जाता है- 
1.सघन (Compact) 
2.स्पंजी (Spongy)

सघन अस्थि (Compact bone) - किसी भी लंबी अस्थि का दंड या शाफ़्ट सिर्फ सघन अस्थि का ही बना होता है। और यह बीच मे खोखला होता है। इस खोखले भाग को मज्जा गुहा कहा जाता है। इस मज्जा गुहा में पीत मज्जा भरी रहती है।

स्पंजी अस्थि (Spongy bone) - अस्थि के दोनों सिरों पर मज्जा गुहा नही पाई जाती है। ये स्पंजी अस्थि के बने होते है। अस्थि मज्जा को लाल मज्जा भी कहते है।



भ्रूण अवस्था मे अस्थियों का विकास
भ्रूण अवस्था मे अस्थियां 2 प्रकार से बनती है।
1- कलाजात अस्थियां (Membranous Bones)
2- उपस्थिजात अस्थियां (Cartilage Bones)

1- कलाजात अस्थियां (Membranous Bones) - ये अस्थियां भ्रूण अवस्था मे त्वचा के नीचे स्थित अस्थिभवन प्रक्रिया द्वारा बनती है। जो संयोजी ऊतक द्वारा बनती है। ये अस्थियां कंकाल के कोमल और लचीले हिस्सो पर लग कर उन्हें दृढ़ता प्रदान करती है। जैसे - खोपड़ी पर उपस्थित पाई जाने वाली सभी चपटी अस्थियां कलाजात अस्थियां होती है।

2- उपस्थिजात अस्थियां (Cartilage Bones) - ये प्रतिस्थापित अस्थियां होती है। ये अस्थियां भ्रूण की उपास्थियों की निरंतर वृद्धि से बनती है। इनके बनने की प्रक्रिया को अस्थिजनन कहा जाता है।

आइये अब हम मनुष्य के कंकाल (Skeleton of Man) की चर्चा करेंगे।

मनुष्य कंकाल को 2 भागो में बाँटा गया है।
1. अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton)
2. अनुबंधी कंकाल (Appendicular Skeleton)

इसी आधार पर मनुष्य शरीर मे अस्थियो की संख्या 206 होती है। आइये इन अस्थियों के बारे में जानते है। अस्थियों की संख्या और कौनसी अस्थि शरीर में कहाँ और कितनी होती है? अब हम ये जानेंगे।


अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton)
अक्षीय कंकाल में अस्थियो की कुल संख्या 80 होती है। जिसमे 28 अस्थियां करोटि की, 1 अस्थि हाइऔइड की, 26 अस्थियां कशेरुक दंड की, और 25 अस्थियां वक्ष की होती है।

A. करोटि (Skull) - कुल अस्थियो की संख्या 28 होती है।

कपाल या क्रेनियम (Cranium) - अस्थियो की            संख्या 8 होती है।
चेहरा (Face) - अस्थियो की संख्या 14 होती है।
कर्ण अस्थियां (Ear Ossicles) - अस्थियो की संख्या 6 होती है।


B. हाइऔइड (Hyoid) - कुल 1 अस्थि होती है।


C. कशेरुक दंड (Vertebral Column) - अस्थियो की कुल संख्या 26 होती है।

ग्रीवा (Cervical Vertebrae) - अस्थियो की संख्या 7 होती है।
वक्षीय (Thoracic Vertebrae) - अस्थियो की संख्या 12 होती है।
कटि (Lumbar Vertebrae) - अस्थियो की संख्या 5 होती है।
सैक्रम (Sacrum) - अस्थियो की संख्या 1 होती है।
अनुत्रिक (Caudal Vertebrae) - अस्थियो की संख्या 1 होती है।


D. वक्ष (Thorax) - अस्थियो की कुल संख्या 25 होती है।

स्टर्नम (Sternum) - अस्थियो की संख्या 1 होती है।
पसलियां (Ribs) - अस्थियो की संख्या 24 होती है।


अनुबंधी कंकाल (Appendicular Skeleton)
अनुबंधी कंकाल को 2 भागो में बांटा जाता है। जिसमे ऊपरी भाग और निचला भाग होता है। ऊपरी भाग में भुजाये, अंस मेखला, हाथ आते हैं। और निचले भाग में श्रोणी मेखला, टांग, पाद आते हैं। अनुबंधी कंकाल में अस्थियो की कुछ संख्या 126 होती है। जिसमे 64 अस्थियां ऊपरी भाग में तथा 62 अस्थियां निचले भाग में होती है।

1. ऊपरी भाग (Upper Region) - ऊपरी भाग में अस्थियो की कुल संख्या 64 होती है।

A. भुजाये (Arms) - अस्थियो की कुल संख्या 6 होती है।

ह्यूमरस (Humerus) - 2 अस्थियां होती है।
रेडियस (Radius) - 2 अस्थियां होती है।
अल्ना (Ulna) - 2 अस्थियां होती है।

B. अंस मेखला (Pectoral Girdle) - अस्थियो की कुल संख्या 4 होती है।

क्लैविकल (Clavicle) - अस्थियो की संख्या 2 होती है।
स्कैपुला (Scapula) - अस्थियो की संख्या 2 होती है।

C. हाथ (Hands) - अस्थियो की संख्या 54 होती है।

कार्पल (Carpals) - 16 अस्थियां होती है।
मैटाकार्पल (Metacarpals) - 10 अस्थियां होती है।
अंगुलास्थियां (Phalanges) - 28 अस्थियां होती है।


2. निचला भाग (Lower region) - निचले भाग में अस्थियो की कुल संख्या 62 होती है।

A. श्रोणी मेखला (Pelvic Girdle) - श्रोणी मेखला में अस्थियो की संख्या 2 है।

इन्नोमिनेट (Innominate) - 2 अस्थियां होती है।


B. टांग (Legs) - कुल 8 अस्थियां होती है।

फीमर (Femur) - 2 अस्थियां होती है।
पैटेला (Patella) - 2 अस्थियां होती है।
फिबुला (Fibula) - 2 अस्थियां होती है।
टिबिया (Tibia) - 2 अस्थियां होती है।


C. पाद (Feet) - कुल अस्थियां 52 होती है।

टार्सल्स (Tarsals) - 14 अस्थियां होती है।
मैटाटार्सल्स (Metatarsals) - 10 अस्थियां होती है।
अंगुलास्थियां (Phalanges) - 28 अस्थियां होती है।



अक्षीय कंकाल की 80 अस्थियां और अनुबंधी कंकाल की 126 अस्थियां मिलकर मनुष्य कंकाल को बनाती है। इस प्रकार से मनुष्य के शरीर मे कुल 206 अस्थियां पाई जाती है। 


अस्थियों में गति और संधियां
(Movement and Joints in Bones)


यहाँ पर हम अस्थियो की गति और उनके बीच की संधियों के बारे में जानेंगें।

अगर हमारा शरीर केवल और केवल ठोस कंकाल का ही बना होता, तो हम चलन या किसी भी प्रकार की कोई गति नहीं कर पाते। क्योंकि उस स्थिति में हमारा शरीर एक लोहे के स्तंभ जैसा कठोर होता, और हमारा शरीर किसी भी प्रकार की कोई हलचल या कोई गति नहीं कर पाता। अब गति और चलन के लिए यह बहुत आवश्यक होता है,

कि हमारी अस्थियां झुक सके, मुड़ सकें या स्वयं में हिल-डुल सकें लेकिन ऐसा नहीं होता है, क्योंकि सीधे खड़े रहने के लिए हमारे कंकाल को ठोस अस्थियों की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार की समस्याओं को दूर करने के लिए हमारी अस्थियां अनेक प्रकार के छोटे-छोटे खंडों में टूटी हुई होती है

तथा खंडों में होने के साथ साथ ये आपस में जुड़ी हुई भी होती है। जिससे अस्थियो को जोड़ो पर उन्हें आसानी से हिलाया डुलाया जा सके। इन जोड़ो को अस्थि संधि कहा जाता है। 
अर्थात कंकाल का वह स्थान जहाँ पर दो या दो से अधिक अस्थियां जुड़ती है, उस स्थान को अस्थि संधि (Articulation) कहते है। और इससे संबंधित अध्ययन को आर्थोलॉजी (Arthrology) कहते है।

गति की प्रकृति को आधार मानते हुए अस्थि संधियों को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
1. पूर्ण या चल संधि
2. अपूर्ण संधि 
3. अचल संधि

चल संधि या पूर्ण संधि 
(Movable Joint or Perfect Joint)

चल संधि या पूर्ण संधि में उपस्थित अस्थियां जरूरत के समय हिल-डुल सकती है। चल संधि में अस्थियों के सिरे पर हायलाइन नामक उपस्थियां लगी होती है। जो एक टोपी की तरह अस्थियो के सिरों पर मढ़ी होती है। इन्हें संधि उपास्थि (Articular Cartilage) भी कहते हैं। संधि की जगह दृढ़ स्नायु या लिगामेंट के बने एक संधि सम्पुट (Joint capsule) में बंद होती है।

जिसे सायनोवियल सम्पुट (Synovial capsule) कहते है। सायनोवियल सम्पुट की दीवार दोनों तरफ की अस्थियो के पेरिओस्टियम से जुड़ी होती है। और इसकी अंदर वाली सतह पर एक पतली सी झिल्ली लगी होती है। जिसे सायनोवियल कला (synovial membrane) कहते है। सायनोवियल सम्पुट की गुहा में दोनों अस्थियो के बीच मे एक संकरा स्थान होता है। इस स्थान को सायनोवियल गुहा (Synovial cavity) कहते है। और इसमें एक द्रव भरा होता है। जिसे सायनोवियल द्रव (synovial liquid) कहते है। 

इस प्रकार की व्यवस्था होने पर अस्थियां आपस मे जब हिलती डुलती है तब रगड़ नही खाती है। इन संधियों पर अस्थियो को अच्छी तरह से साधने के लिए अस्थियो के दोनों ओर स्नायु या लिगामेंट होते है। लिगामेंट की सहायता से अस्थियो को इच्छा के अनुसार कई दिशाओ में घुमाया जा सकता है। और लिगामेंट की सहायता से ही अस्थियां घूमने के बाद अपनी पूर्व अवस्था मे वापिस आ जाती है।

पूर्ण संधियां किस किस प्रकार की होती है?

इनके प्रकार निम्लिखित है-
1. कब्जा संधि (Hinge joint) - इस संधि में एक अस्थि के सिरे का उभार, दूसरी अस्थि के गड्ढे में फसा होता है। कि जिस अस्थि का सिरा उभरा हुआ होता है, वह सिर्फ एक दरवाजे की के पलड़े की तरह एक ही दिशा में घूम सकती है।

उदाहरण - अंगुलियों के पोरों में, घुटने में, कोहनी में। यह संधि होती है।
2. फिसलने वाली या विसर्पी संधि (Gliding joint) - इस संधि में संधि के स्थान पर दोनों अस्थियां फिसल सकती है।
उदाहरण - रेडियस अल्ना के बीच, कलाई के बीच, कशेरुकी में संधि के प्रवर्धो के बीच। यह संधि होती है।

3. कन्दुक खल्लिका संधि (Ball and Socket joint or enarthroses) - इसमे एक अस्थि का सिरा प्याले की तरह का होता है, तथा दूसरी अस्थि का सिरा एक गेंद की तरह होता है। गेंद वाला सिरा, प्याले वाले सिरे में आसानी से फिट बैठ जाता है। और इस तरह से गेंद के सिरे वाली अस्थि को चारों ओर घुमाया जा सकता है।
उदाहरण - कंधे की संधि में, श्रोणी मेखलाओ से अग्रपाद और पश्चपाद कि अस्थि इसी संधि द्वारा जुड़ी होती है।

4. धुराग्र संधि या खूँटीदार संधि (Pivot joint) - इसमे एक अस्थि किसी धुरी के समान एक ही स्थान पर स्थिर रहती है, और दूसरी अस्थि अपने गड्ढे द्वारा इसके चारों ओर धूमती रहती है।
उदाहरण - सभी स्तनियों में दूसरी कशेरुक के ओडोन्टाइड प्रवर्ध के ऊपर की ओर करोटि को धारण किये हुए कशेरुक के घूमने की अवस्था खूँटीदार संधि को दर्शाता है।

5. काठी संधि (Saddle Joint) - ये संधि कन्दुक खल्लिका संधि की ही जैसी होती है, लेकिन इस संधि में कन्दुक और खल्लिका दोनों ही कम विकसित होते है। इसीलिए इसमे अस्थि चारो ओर अच्छी तरह से नही घूम पाती है।
उदाहरण - यह संधि अंगूठे की मेटाकार्पल्स और कार्पल्स के बीच होती है। जिसकी वजह से अंगूठा और दूसरी अंगुलियों की तुलना में चारो ओर ज्यादा घूम जाता है।


अपूर्ण या अल्प चल संधियां
(Imperfect or Slightly Movable Joints)
इस प्रकार की संधि में संधि को बनाने वाली अस्थियो के मध्य में कोई साइनोवियल सम्पुट और किसी प्रकार के लिगामेंट नही पाई जाते है। बल्कि उस लिगमेंट के स्थान पर पतली सी उपास्थि पाई जाती है,

जिसके कारण उस जोड़ को बनाने वाली अस्थियो में बस थोड़ी ही गति पाई जाती है। कशेरुको के बीच की संधियों और सैक्रल कशेरुको के अनुप्रस्थ काट के प्रवरधो के बीच मे इस प्रकार की संधियां देखने को मिलती है। या श्रोणी और अंस मेखला की कुछ संधियां भी इसी प्रकार की होती है।


अचल संधियां
(Immovable or Fixed joints)
इस संधि में सभी अस्थियां बहुत पास पास होती है। जिससे अस्थियो में थोड़ी सी भी गति नही हो पाती है। जैसे हमारी करोटि की अस्थियां आरी जैसे दांतो वाली अस्थियो से जुड़ी होती है। इन संधियों को आसानी से नही खोला जा सकता है।

आइये अब अस्थियो और उनकी गतियों से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें और जानते है।

अस्थि भंग या विस्थापन (Dislocation of bones) क्या होता है?
संधि पर जब अस्थियां अपनी पहले की अवस्था से किसी कारण से खिसक जाती है या हिल जाती है तब उसे अस्थि भंग होने कहते है। इससे अस्थियो को जोड़े रखने वाले लिगामेंट भी खिंचकर टूट जाते है।

हड्डी का टूटना (Fracture) क्या होता है?

किसी भी कारण से जब हड्डी में दरार आ जाती है, भले ही कारण गिरना या मुड़ना रहा हो तब उससे हड्डी टूट जाती है। बच्चों की अस्थियां मुलायम होती है क्योंकि उनमें लवणों की अपेक्षा कार्बनिक पदार्थ ज्यादा होता है। इसलिए वे जल्दी नही टूटतीं। किन्तु वही दूसरी ओर आयु बढ़ने के साथ साथ अस्थियो में लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है और अस्थियां भंगुर होती जाती है। जिससे वे कठोर होती जाती है। इसीलिए अधिक आयु में अस्थियां जल्दी टूट जाती है।

विसर्पण डिस्क (Slipped Disc) क्या होता है?
जब कशेरुको और उनके बीच की फाइब्रोकार्टिलेज की बनी एक इंटरवर्टिब्रल डिस्क खिसक जाती है तब उसे slipped disc कहते है।

मोच (sprain) किसे कहते है?
किसी संधि की जगह पर टेंडन या लिगमेंट के खिंचने या फटने को ही मोच कहते है। जिससे उस स्थान पर दर्द होने लग जाता है। और सूजन आ जाता है।

आशा करता हूँ कि आपको ये बाते पसन्द आई होंगी। और इनसे आपको अच्छा ज्ञान प्राप्त हुआ होगा। इसी प्रकार आपको भविष्य में और भी ज्ञान के बातें बताई जाएंगी। 
                              
आशा करता हूं आपको हमारी मनुष्य का कंकाल तंत्र क्या होता है? - Skeletal System से सम्बंधित प्रश्न  की पोस्ट पसंद आई होगी अगर आपको इस पोस्टर लेटेड कोई भी क्वेश्चन हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बता सकते हैं मैं जल्द से जल्द आपके क्वेश्चन का आंसर देने की कोशिश करूंगा















मनुष्य का कंकाल तंत्र क्या होता है? - Skeletal System से सम्बंधित प्रश्न ? मनुष्य का कंकाल तंत्र क्या होता है? - Skeletal System से सम्बंधित प्रश्न ? Reviewed by Saurabh Sharma on June 02, 2020 Rating: 5

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